भारत की कुल जनगणना में आदिवासी 8.61% है।
भारत में 427 अनुसूचित जनजातियों हैं।
अधिकांश भारतीय कबीलों का निवास वनों में है और वे वन्य प्राकृतिक साधनों पर ही निर्भर करते हैं।
जनजाति वास्तव में भारत के आदिवासियों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक वैधानिक पद है। भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति पद का प्रयोग हुआ है और इनके लिए विशेष प्रावधान लागू किये गए हैं।
उत्तराखण्ड में रहने वाली भोटिया, थारू, जौनसारी,बुक्शा एंव राजी जनजातियों को वर्ष 1967 में अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था। ये पाॅच जनजातियों मे बुक्सा एवं राजी जनजाति आर्थिक, शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से अन्य जनजातियों की अपेक्षा काफी निर्धन एवं पिछड़ी होने के कारण उन्हें आदिम जनजाति समूह की श्रेणी में रखा गया है।
जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार
प्रदेश की कुल जनसंख्या
1,00,86,292
अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या
2,91,903 (2.9%)
बी.पी.एल. परिवारो के अनुसूचित जनजतियों की जनसंख्या
26,295
लिंगानुपात-963
इस 5 जनजातियों में सबसे अधिक जनसँख्या थारू एवं सबसे कम राजी जनजाति की है। 2001 की जनगणना के अनुसार राजी 682 तथा थारू 82,790 जनसँख्या उत्तराखंड में निवास करती है।
जनजातियों में सबसे अधिक जनसँख्या उधम सिंह नगर( 1,23,037) और सबसे कम जनसँख्या रुद्रप्रयाग (386) में हैं।
% के अनुसार सबसे अधिक उधम सिंह नगर( 7.46%) और सबसे कम टिहरी (0.14%) में है।
साक्षरता- 73.9%( महिला-62.5, पुरुष- 83.8%)
आरक्षण- संविधान के अनुछेद 332 के अनुसार, राज्य की 70 विधानसभा शीटों में 2 शीट st के लिए आरक्षित है। एक चकरोता( देहरादून) दूसरी नानकमत्ता (उ सी नगर)
इसके अलावा राजकीय सेवा,शिक्षण संस्थाओं,निगमो इन सभी में 4 % आरक्षण की व्यवस्था है।
आरक्षण
अनुच्छेद 243घ
पंचायतों में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का उपबंध करता है।
अनुच्छेद 330
लोक सभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का उपबंध करता है।
अनुच्छेद 332
विधान सभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का उपबंध करता है।
थारू
उधम सिंह नगर जिले में मुख्य रूप से खटीमा, किच्छा, नानकमत्ता और सितारगंज के 141 गांव में थारू लोग निवास करते है। थारू समुदाय उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है।
उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर गोंणा, बहराइच, महराजगंज, सिद्धार्थ नगर आदि जिलों, बिहार के चंपारण तथा दरभंगा जिलों तथा नेपाल के पूर्व में भेंची से लेकर पश्चिम में महाकाली नदी तक तराई एवं भाबर क्षेत्रों में फैले हुए है।
उत्पत्ति
सामान्य: थारुओं को किरात वंश का माना जाता है। जो कई जातियो और उप जातियों में विभाजित है। थारू शब्द की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में अनेक मतभेद है। कुछ विद्वान राजस्थान के थार मरुस्थल से आकर बसने के कारण इन्हें थारू कहते है ।लेकिन ”थारू जनजाति” के लोग स्वयं को महाराणा प्रताप की सेना का मानते हैं।
आवास
ये लोग अपना मकान बनाने के लिए लकड़ी, पत्तों और नरकुल का प्रयोग करते है। दीवारों पर चित्रकारी होती है। प्रत्येक घर में पशुबाड़ा (Stockyard) व घर के सामने प्राय: पूजा स्थल (Places of worship) होता है।
भोजन (Food)
इनका मुख्य भोजन चावल और मछली है।
सामाजिक स्वरूप (Social Structure)
सामाजिक रूप से यह कई गोत्रों या जातियों (Castes) में बटे हैI बड़वायक, बट्ठा, रावत, वृतियाँ, महतो व डहेत इनके प्रमुख गोत्र या घराने है। बडवायक सबसे उच्च मानें जाते है।
शारीरिक गठन-
ये देखने में मंगोल प्रजाति के नजर आते है।
भाषा
इनकी कोई विशेष भाषा नही है ये जिस इलाके में रहते है वही की भाषा बोलते हैं।
वेशभूषा
धर्म
थारू, हिन्दू धर्म को मानते है। पछावन, काली, नगरयाई देवी, भूमिया, करोदेव सहित अनेक देवी-देवताओं, भूत-प्रेतों तथा अपने पूर्वजों की भी पूजा करते है।
त्यौहार
दशहरा, होली, दिवाली, माघ की खिचड़ी, कन्हैया अष्टमी और बजहर इनके प्रमुख त्यौहार है।
बजहर नामक त्यौहार ज्येष्ठ या बैशाख में मनाया जाता है, दिवाली को ये शोक पर्व के रूप में मनाते है।
होली फाल्गुन पूणिमा के आठ दिनों तक मनाया जाता है, जिस में स्त्री व पुरुष दोनों मिलकर खिचड़ी नृत्य करते है।
अर्थव्यवस्था
थारू लोग प्राय: सीधे-सादे व ईमानदार होते है। इनका आर्थिक जीवन सामान्य रूप से कृषि, पशुपालन व आघेट पर आधारित होता है। लेकिन अब समय के साथ लोग नौकरी की ओर भी जाने लगे है।
1-थारू जनजाति के लोगो का निवास स्थान है →खटीमा, सितारगंज, किच्छा, नानकमत्ता, बनबसा आदि
2-थारू जनजाति के लोग स्वयं को मानते है →राणा प्रताप के वंशज
3-थारुओ के शारीरिक लक्षण किस प्रजाति से मिलते है →मंगोल प्रजाति से
4-इतिहासकारों के अनुसार थारुओ का वंशज माना जाता है →किरात वंश
5-थारू जनजाति के लोगो का मुख्य व्यवसाय है →कृषि, आखेट, पशुपालन
6- थारू जनजाति के लोगो का मुख्य भोजन है →चावल, मछली
7-थारू जनजाति के लोगो का प्रिय पेय पदार्थ है →जाड़ (चावल की शराब)
8-थारू समाज है → मातृसत्तात्मक
9- थारू जनजाति के पुरूषों की वेशभूषा है →लंगोटी, कुर्ता, टोपी, साफा एवं सफ़ेद धोती
10- थारू जनजाति स्त्रियों की वेशभूषा है→लहंगा, चोली, आभूषण
11- थारू समाज के प्रमुख देवी देवता है →पछावन, खड्गाभूत काली, भूमिया, कलुवा, आदि
12- थारू लोग दीपावली को किस पर्व के रूप में मानते है →शोक के पर्व के रूप में
13-थारु जनजाति के लोगो में विवाह की कितनी पधतिया प्रचलित है→4
14-थारु जनजाति में विधवा विवाह के बाद दिए जाने वाला भोजन कहलाता है →लठभरता भोजन
15- थारु जनजाति में सगाई की रस्म कहलाती है →अपना-पराया
16- थारु जनजाति के मुख्य त्यौहार है →दशहरा, होली, दीपावली, बज़हर,माघ की खिचड़ी आदि
17- थारु जनजाति की प्रमुख कुरियां (गोत्र) है → बाडवायक, बट्ठा रावत वृत्तियाँ, महतो व डहैत
18-थारु जनजाति में विवाह की पधतिया है→ अपना-पराया, बात-कट्ठी, विवाह, चाला
भारत में 427 अनुसूचित जनजातियों हैं।
अधिकांश भारतीय कबीलों का निवास वनों में है और वे वन्य प्राकृतिक साधनों पर ही निर्भर करते हैं।
जनजाति वास्तव में भारत के आदिवासियों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक वैधानिक पद है। भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति पद का प्रयोग हुआ है और इनके लिए विशेष प्रावधान लागू किये गए हैं।
उत्तराखण्ड में रहने वाली भोटिया, थारू, जौनसारी,बुक्शा एंव राजी जनजातियों को वर्ष 1967 में अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था। ये पाॅच जनजातियों मे बुक्सा एवं राजी जनजाति आर्थिक, शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से अन्य जनजातियों की अपेक्षा काफी निर्धन एवं पिछड़ी होने के कारण उन्हें आदिम जनजाति समूह की श्रेणी में रखा गया है।
जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार
प्रदेश की कुल जनसंख्या
1,00,86,292
अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या
2,91,903 (2.9%)
बी.पी.एल. परिवारो के अनुसूचित जनजतियों की जनसंख्या
26,295
लिंगानुपात-963
इस 5 जनजातियों में सबसे अधिक जनसँख्या थारू एवं सबसे कम राजी जनजाति की है। 2001 की जनगणना के अनुसार राजी 682 तथा थारू 82,790 जनसँख्या उत्तराखंड में निवास करती है।
जनजातियों में सबसे अधिक जनसँख्या उधम सिंह नगर( 1,23,037) और सबसे कम जनसँख्या रुद्रप्रयाग (386) में हैं।
% के अनुसार सबसे अधिक उधम सिंह नगर( 7.46%) और सबसे कम टिहरी (0.14%) में है।
साक्षरता- 73.9%( महिला-62.5, पुरुष- 83.8%)
आरक्षण- संविधान के अनुछेद 332 के अनुसार, राज्य की 70 विधानसभा शीटों में 2 शीट st के लिए आरक्षित है। एक चकरोता( देहरादून) दूसरी नानकमत्ता (उ सी नगर)
इसके अलावा राजकीय सेवा,शिक्षण संस्थाओं,निगमो इन सभी में 4 % आरक्षण की व्यवस्था है।
आरक्षण
अनुच्छेद 243घ
पंचायतों में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का उपबंध करता है।
अनुच्छेद 330
लोक सभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का उपबंध करता है।
अनुच्छेद 332
विधान सभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का उपबंध करता है।
थारू
उधम सिंह नगर जिले में मुख्य रूप से खटीमा, किच्छा, नानकमत्ता और सितारगंज के 141 गांव में थारू लोग निवास करते है। थारू समुदाय उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है।
उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर गोंणा, बहराइच, महराजगंज, सिद्धार्थ नगर आदि जिलों, बिहार के चंपारण तथा दरभंगा जिलों तथा नेपाल के पूर्व में भेंची से लेकर पश्चिम में महाकाली नदी तक तराई एवं भाबर क्षेत्रों में फैले हुए है।
उत्पत्ति
सामान्य: थारुओं को किरात वंश का माना जाता है। जो कई जातियो और उप जातियों में विभाजित है। थारू शब्द की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में अनेक मतभेद है। कुछ विद्वान राजस्थान के थार मरुस्थल से आकर बसने के कारण इन्हें थारू कहते है ।लेकिन ”थारू जनजाति” के लोग स्वयं को महाराणा प्रताप की सेना का मानते हैं।
आवास
ये लोग अपना मकान बनाने के लिए लकड़ी, पत्तों और नरकुल का प्रयोग करते है। दीवारों पर चित्रकारी होती है। प्रत्येक घर में पशुबाड़ा (Stockyard) व घर के सामने प्राय: पूजा स्थल (Places of worship) होता है।
भोजन (Food)
इनका मुख्य भोजन चावल और मछली है।
सामाजिक स्वरूप (Social Structure)
सामाजिक रूप से यह कई गोत्रों या जातियों (Castes) में बटे हैI बड़वायक, बट्ठा, रावत, वृतियाँ, महतो व डहेत इनके प्रमुख गोत्र या घराने है। बडवायक सबसे उच्च मानें जाते है।
शारीरिक गठन-
ये देखने में मंगोल प्रजाति के नजर आते है।
भाषा
इनकी कोई विशेष भाषा नही है ये जिस इलाके में रहते है वही की भाषा बोलते हैं।
वेशभूषा
धर्म
थारू, हिन्दू धर्म को मानते है। पछावन, काली, नगरयाई देवी, भूमिया, करोदेव सहित अनेक देवी-देवताओं, भूत-प्रेतों तथा अपने पूर्वजों की भी पूजा करते है।
त्यौहार
दशहरा, होली, दिवाली, माघ की खिचड़ी, कन्हैया अष्टमी और बजहर इनके प्रमुख त्यौहार है।
बजहर नामक त्यौहार ज्येष्ठ या बैशाख में मनाया जाता है, दिवाली को ये शोक पर्व के रूप में मनाते है।
होली फाल्गुन पूणिमा के आठ दिनों तक मनाया जाता है, जिस में स्त्री व पुरुष दोनों मिलकर खिचड़ी नृत्य करते है।
अर्थव्यवस्था
थारू लोग प्राय: सीधे-सादे व ईमानदार होते है। इनका आर्थिक जीवन सामान्य रूप से कृषि, पशुपालन व आघेट पर आधारित होता है। लेकिन अब समय के साथ लोग नौकरी की ओर भी जाने लगे है।
1-थारू जनजाति के लोगो का निवास स्थान है →खटीमा, सितारगंज, किच्छा, नानकमत्ता, बनबसा आदि
2-थारू जनजाति के लोग स्वयं को मानते है →राणा प्रताप के वंशज
3-थारुओ के शारीरिक लक्षण किस प्रजाति से मिलते है →मंगोल प्रजाति से
4-इतिहासकारों के अनुसार थारुओ का वंशज माना जाता है →किरात वंश
5-थारू जनजाति के लोगो का मुख्य व्यवसाय है →कृषि, आखेट, पशुपालन
6- थारू जनजाति के लोगो का मुख्य भोजन है →चावल, मछली
7-थारू जनजाति के लोगो का प्रिय पेय पदार्थ है →जाड़ (चावल की शराब)
8-थारू समाज है → मातृसत्तात्मक
9- थारू जनजाति के पुरूषों की वेशभूषा है →लंगोटी, कुर्ता, टोपी, साफा एवं सफ़ेद धोती
10- थारू जनजाति स्त्रियों की वेशभूषा है→लहंगा, चोली, आभूषण
11- थारू समाज के प्रमुख देवी देवता है →पछावन, खड्गाभूत काली, भूमिया, कलुवा, आदि
12- थारू लोग दीपावली को किस पर्व के रूप में मानते है →शोक के पर्व के रूप में
13-थारु जनजाति के लोगो में विवाह की कितनी पधतिया प्रचलित है→4
14-थारु जनजाति में विधवा विवाह के बाद दिए जाने वाला भोजन कहलाता है →लठभरता भोजन
15- थारु जनजाति में सगाई की रस्म कहलाती है →अपना-पराया
16- थारु जनजाति के मुख्य त्यौहार है →दशहरा, होली, दीपावली, बज़हर,माघ की खिचड़ी आदि
17- थारु जनजाति की प्रमुख कुरियां (गोत्र) है → बाडवायक, बट्ठा रावत वृत्तियाँ, महतो व डहैत
18-थारु जनजाति में विवाह की पधतिया है→ अपना-पराया, बात-कट्ठी, विवाह, चाला
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